संपादकीय / किसानों की लागत घटने से होगा अर्थव्यवस्था को लाभ


भले ही 2022 तक किसानों की आय दूनी होने का सरकारी दावा हकीकत न हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि खेती की आय, थोड़ी ही सही पर बढ़ी है। इसके संकेत इस बात से मिलते हैं कि देश में इस वर्ष अनाज पैदावार में रिकॉर्ड वृद्धि का अनुमान है और दूसरी ओर रासायनिक खाद की खपत में पिछले दो वर्षों में लगातार कमी हुई है, यानी किसानों ने कम लागत में ज्यादा अनाज पैदा किया। ताजा आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि यूरिया (नाइट्रोजन) की खपत इस काल में गिरी है, जबकि अन्य दो प्रमुख तत्वों फॉस्फेट और पोटाश की बढ़ी है।


पिछले पांच साल की सरकारी मेहनत रंग लाई है। केंद्र सरकार ने भू-मृदा परीक्षण कार्ड (स्वायल हेल्थ कार्ड) के जरिये किसानों की जमीन की उर्वरा शक्ति की जांच का अभियान शुरू किया है, हालांकि काफी क्षेत्रों में किसानों को यह कार्ड अभी तक नहीं मिला है, यह कहा जा सकता है कि किसानों पर इस अभियान का असर पड़ा है। दरअसल, तमाम ऐसे खेतों में जहां पहले से नाइट्रोजन जमीन में है और यूरिया या अन्य नाइट्रोजन वाली खादें डालने पर जमीन की उर्वरा शक्ति ख़त्म हो रही है। सरकार इसे रोकना चाहती थी। देर से ही सही, शायद अब किसानों को यह बात समझ में आने लगी है और अब वे अन्य दो प्रमुख तत्वों फास्फेट और पोटाश का प्रयोग करने लगा है।


इसकी वजह से जमीन की उर्वरा शक्ति में तीनों तत्वों का संतुलन बना रहेगा और उत्पादन में आशातीत वृद्धि हो सकेगी। अगर किसानों की पैदावार कम लागत से ज्यादा होगी तो देश के इस 68 प्रतिशत आबादी वाले वर्ग के पास न केवल पैसा आएगा, बल्कि वह इसे तेल, साबुन या अन्य सामान्य उपभोग के सामान पर खर्च करेगा। इन सामानों को बनाने वाले कारखाने बड़े उद्यमों के मुकाबले दस गुना ज्यादा नौकरियां देते हैं, लिहाज़ा यह सेक्टर बेहतर होगा तो युवाओं को ज्यादा रोजगार मिलेंगे और फिर वे भी रोजमर्रा का सामान खरीदेंगे। इससे अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी पर आने लगेगी। ताजा त्रैमासिक आंकड़े बताते हैं कि विकास दर में पिछले सात साल में सबसे ज्यादा गिरावट आई है। अर्थशास्त्री मानते हैं कि अगर किसान आम उपभोग की वस्तुएं नहीं खरीदेगा तो यह गिरावट और ज्यादा होगी।